हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा स्थित बैजनाथ का ये मंदिर आज भी युग की यादों को समेटे हुए हैं। कहते है कि रावण तीनों लोकों पर अपना राज कायम करने के लिए कैलाश पर्वत पर तपस्या कर रहा था। भगवान भोलेनाथ को खुश करने के लिए उसने अपने दस सिर हवन में काटकर चढ़ा दिए थे बाद में भगवान भोलेनाथ रावण की तपस्या से खुश हुए और उसके सिर उसे दोबारा दे दिए। यही नहीं भोलेनाथ ने रावण को असीम शक्तियां भी दी जिससे वह परम शक्तिशाली बन गया था। रावण ने कहा था कि वह भगवान शिव को लंका ले जाना चाहता है। भगवान शिव ने उसकी ये इच्छा भी पूरी की और शिवलिंग में परिवर्तित हो गए। मगर उन्होंने कहा कि वह जहां मंदिर बनवाएगा वहीं, इस शिवलिंग को जमीन पर रखे।रावण भी कैलाश से लंका के लिए चल पड़ा। रास्ते में उसे लघुशंका जाना पड़ा। वह बैजनाथ में रुका और यहां भेड़ें चरा रहे गडरिए को देखा। उसने ये शिवलिंग गडरिए को दे दिया और खुद लघुशंका करने चला गया। क्योंकि शिवलिंग भारी था इसलिए गडरिए ने इसे थोड़ी देर के लिए जमीन पर रख दिया। वह उसे उठाने लगा लेकिन उठा नहीं पाया। काफी कोशिश करने के बाद भी शिवलिंग जस से तस नहीं हुआ। रावण शिव महिमा को जान गया और वहीं मंदिर का निर्माण करवा दिया।मंदिर का निर्माण अब नगोरा शैली में किया गया है। आज इस भव्य मंदिर में देश विदेश से श्रद्घालु पहुंचते हैं।
रावण एक गलती की वजह से इस जगह से शिवलिंग को नहीं ले जा पाया था ,पढ़े कहानी?

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